बुआ की बेटी को चोदा
मेरा नाम नीरज है और मैं 35 साल का हूं। मेरा घर उत्तरप्रदेश के वाराणसी में है।
बात उन दिनों की है जब मै नौकरी के लिए दिल्ली रहा करता था। एकदिन अचानक माँ का फोन आया की बुआ की लड़की का तबियत बहुत खराब है और मुझे इलाहाबाद जाना पड़ेगा।
मैं भी जल्दी से ट्रेन पकड़ा और निकल गया। बुआ के घर मे कोई नही था सिर्फ बुआ और उनकी एक बेटी जो मुझसे उम्र में 2 साल की बड़ी हैं।
जब इलाहाबाद पहुचाँ तो पता चला की अनिता (बुआ की बेटी) सीढ़ी से गिर गई और पैर टूट गया है। एक दिन हॉस्पिटल में थी और फिर घर लेकर आ गए हम। ऐसा हालत में मैं कैसे छोड़ कर आता इसलिए मुझे भी कुछ दिन की छुट्टी लेकर वहीं रह जानी पड़ी।
बुआ भी ऑफिस जाती थी तो मैंने बुआ को कहा की आप ऑफिस चली जाओ मैं घर पर तो हूं ही। अब बुआ के जाने के बाद अनिता का पूरा ध्यान मूझे ही रखना पड़ता। उसके लिए खाना लाना, उसे बाथरूम तक ले जाना, उठना बिठाना सब कुछ ही। इस चक्कर मे मेरे हाथ कई बार उसके सिने पर लग ही जाते, पहले तो मेरे मन में ऐसा कोई सोच नही आया लेकिन धीरे धीरे उसके गोरे बदन और सुडौल शरीर मेरे मन को बहकाने लगा।
पैर टूटे होने के वजह से, कई बार उसको सूट। तक मैं पहना कर देता। उसके गोर जांघ देखकर जी करता चुम लू अभी ही। अब मैंने भी मौके का धीरे धीरे फायदा उठाना शुरु किया। उसे पकड़ कर ले जाते वक्त कई बार उसके स्तनों को मैं एक तरह से पकड़ ही लिया करता, दबा दिया करता। फिर उसके तरफ देखता तो ऐसे लगता जैसे उसे भी मजे ही आते, ना कोई विरोध, ना कोई चेहरे पर ऐसा भाव की गलत हो रहा।
शायद वह भी यही चाहती थी। नहाते वक्त वह बाथरूम का दरवाजा बंद नही करती। एकदिन जब वह नहा रही थी , मैं धीरे से पीछे से देखने लगा। गोरा बदन, स्तनों का उभार जो तो कर रहा था अभी घुस जाऊं। लेकिन मन को किसी तरह रोका, लेकिन मन कहाँ माने, बारबार पाने को बेचैन हो रहा था। जब मैं उसे ले जा रहा था तब उसे करीब से महसूस करने लगा और इस चक्कर मे कब उसके बूब्स को मसलने लगा पता ही नही चला और वह भी मेरे तरफ देखे जा रही थी। जब मेरी नज़र उसपर पड़ी तो मैने सॉरी कहा, लेकिन वह कहने लगी यह तो रोज ही करते हो तो आज सॉरी क्यों। वैसे मुझे बुरा नही लगता, दबाने का चीज है दबा दिए, कौनसी बड़ी बात है। अब तो मेरी हिम्मत बढ़ गई,। चेहरे पर हंसी लिए मैंने पूछा सच मे? तो उसने कहा हाँ, क्योंकि अच्छा तो मुझे भी लगता है।
बुआ की बेटी की सील टूटी मेरे लंड से
फिर क्या था, उसे बिस्तर पर बिठाकर, उसके पीछे से गले के पास चेहरे को लाते हुए अब मैंने भी अपने दोनों हाथ उसके बूब्स पर रख दिए। धीरे धीरे दबाते दबाते, हम दोनों के होठ एक दूसरे के होठों पर आ गए और जैसे हम सब कुछ भूल एक दूसरे में डूबने लगे। एक लंबी किस के बाद अब मैं थोड़ा हटकर, उसके टॉप को उतार दिया। काले रंग के ब्रा में, उपर का उभार। झट से मैंने उस ब्रा को भी उतार फेका। अब तो मुंह मे लेने में देरी कैसी सोचकर सामने जाकर उसके सामने घुटने पर बैठ गया। और धीरे धीरे उसके स्तनों से खेलने लगा। वह तो जैसे पागल हुए जा रही थी औऱ मुझे अपनी ओर खिंचे जा रही थीं । अब मैंने भी एकको हाथ से दबाना शुरू किया और दूसरे को मुंह मे ले लिया। जी भरकर चूस चूसकर लाल कर दिया मैन। अब उसे पीछे धकेल बिस्तर पर लिटा दिया मैंने और पायजामे को अलग कर दिया। पैर टुटे होने के वजह से वह पैंटी नहीं पहन पाती। अब रस से भरे, भीगे हुए चूत मेरे सामने। मैन भी देरी ना कर तुरन्त ही होंठ को चूत पर रख दिया। अनिता ने बालो को पकड़ लिए। मैं अब जीभ से चूत की सफाई में लग गया। उसके मुंह से आवाज़ निकलने लगा, आह…राकेश , आह, आ आह और मुझे अपने अंदर खिंच रही हो जैसे।
बुआ की बेटी को चोदा
धीरे धीरे मैं उसका सब रस पी गया। वह अपनी टांगो को फैलाकर इशारा कर रही थी जैसे की अब तो डाल दो।
मैं खड़ा हुआ, अपना पैंट उतारा तो वह बोली इतना बड़ा। मार ही डालोगे क्या, मैंने कहा इरादा तो वही है। फिर लन्ड को उसके चूत के मुंह पर रख धीरे धीरे अंदर करने लगा,वह कराह रही थी आह, आह, धीरे, ओ माँ… और फिर एक जोरदार झटका और पूरा लन्ड अंदर। धीरे धिरे लन्ड का अंदर बाहर होना शुरू हो गया। झटका ने रफ़्तार पकड़ा और यह फच फच का आवाज़। 10 मिनट चला सिलसिला, अब मैं झड़ने वाला था मैंने उससे पूछा क्या करूँ तो बोली अरे अंदर डाल, यह जब अंदर जाती है तो इसके मजे ही कुछ और हैं। उसके बाद मैं उसी के ऊपर कुछ देर पड़ा रह गया। 30 मिनट बाद उठा, उसे भी उठाकर बॉथरूम लेकर गया और अपनी हाथों से उसकी सफाई कर के दी मैंने। फिर अपनी भी सफाई की। फिर आकर उसे बेड पर लिटा कर मैं अपने रूम में चला गया।
मैंने अपनी छुट्टी और 10 दिन बढ़ा दिया। बुआ के नज़र में हमारे बीच बहुत अच्छी दोस्ती हो गई लेकिन हम क्या कर रहें थे किसीको पता नही। 10 दिन लगातार हम दिन में मजे लेते रहें। फिर मैं दिल्ली आ गया। मौका मिलने पर, मैं अब बीच बीच मे बुआ के यहां चला जाता।
कुछ दिन पहले उसकी शादी हो गई, लेकिन जाने से पहले वादा करवा के गई की जब भी मायके आएगी मैं उससे मिलने आऊंगा।
ना उसका पैर टूटता, ना मैं वहां जाता और ना हम दोनों के यह पल मिलता। इसलिए यही कहूंगा कुछ दुर्घटनाएं अच्छी होती है।
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